कन्नौज नरेश जयचन्द्र के पितामह राजा गोविन्द चन्द्र ( १११४-११५४ ) ने अनेक बौद्ध विद्वानों को दान दिया था । श्रावस्ती के जेतवन महाविहार के भिक्षुसंघ को पास के अनेक गाँव दान में दिये थे ( ताम्रपत्र उल्लेख ११३० ई . ) । उनकी महारानी कुमारी देवी ने सारनाथ में विशाल धर्मचक्र बौद्ध विहार का निर्माण करवाया था ( उक्त ताम्रपत्र अभिलेख )।
महाराज जयचन्द्र ने स्वयं बौद्धाचार्य जगत मित्र से बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण की थी । ( डॉ . ए , लाल ; उत्तर प्रदेश के बौद्ध केन्द्र , पृ . १६१ , प्रकाशक - उ.प्र . हिन्दी संस्थान लखनऊ ) । श्रावस्ती का विशाल राजकाराम बौद्ध विहार राजा प्रसेनजित द्वारा निर्मित करवाया गया था । महाराज हर्षवर्धन ने नालन्दा विद्या केन्द्र संचालन हेतु कई सौ गाँव दान में दिये थे । पालवंशी राजा महिपाल ने भी नालन्दा को भूमि प्रदान की थी ।
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ये प्रमाण हैं कि ग्यारहवीं - बारहवीं शताब्दी तक ब्राह्मण धर्म और बौद्ध धर्म एकसाथ फलते - फूलते रहे थे । प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान धर्मकीर्ति और उनका शिष्य , श्रीज्ञान राजा गोविन्द चन्द्र के राज्यकाल में कई सौ पुस्तकों के साथ तिब्बत में धर्म संवर्धन हेतु सन् १११५ ई . में गया था , जिसने वहाँ पर महायान सम्प्रदाय और बौद्ध धर्म की उच्चतम शिक्षा दी , जो कि भारत में तो समाप्तप्राय है , परन्तु तिब्बती लामाओं ने उसे अभी भी जीवित कर रखा है ।
भारत पर मुस्लिम आक्रमण के पश्चात् ब्राह्मण संस्कृति के साथ - साथ बौद्ध मत के मठों और विद्या केन्द्रों को पूर्णतया ध्वस्त किया गया । बख्तियार खिलजी ने नालन्दा विद्या केन्द्र और उदन्तपुरी के विद्या केन्द्र को पूर्णत : नष्ट कर दिया । नालन्दा का विशाल पुस्तकालय १४-१५ महीनों तक लगातार जलता रहा था ।
सिर मुण्डित सारे बौद्ध भिक्षु मौत के घाट उतार दिये गये । मुस्लिम काल में ही कई सहस्र वर्ष से चली आ रही अरण्य विद्या केन्द्रित संस्कृति ( ऋषिकुल आश्रम पद्धति ) नष्ट हो गयी । बौद्ध विहार व भिक्षु समूह नष्ट हो गये।
विस्तृत वर्णन - योग एवं महायोगी गोरखनाथ नामक ग्रंथ से, जिसके संपादक हैं - महंत योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठाधीश्वर संसद सदस्य (लोकसभा) गोरखपुर उत्तर प्रदेश।
ग्रंथ पृष्ठ संख्या 105-121 तक।
लेखक - प्रो0 लाल अमरेंद्र सिंह