ऐसा मुस्लिम भक्त जिसे दर्शन देने के लिए खुद आ गए बाँकेविहारी - newshank.com

"भक्त नूर"



वृंदावन एक यवन (मुस्लिम) जाति में भक्त हुआ जिसका नाम था नूर मोहम्मदनूर मोहम्मद को जाति, धर्म और संप्रदायों के दायरों में बंधी-जकड़ी इस दुनिया को देख कर बड़ा दुख हुआ। उनका विवेकी मन किसी एक मजहब के पिंजरे में कैद न हो पाया। नूर मोहम्मद ने संतो की संगत की, फकीरों और फक्कड़ों कि जमात में रहे, पर सब जगह उसने पाया कि लोगो ने इंसानियत को काट कर टुकड़े टुकड़े कर रखा है।

एक दिन वह वृन्दावन पहुँच गए। यमुना तट पर खड़े हुए, ढलते हुए सूर्य को निहार रहे थे, तभी उन्हें सुनाई दिया कोई मधुर स्वर में गा रहा है:-



नाही हिन्दू, नाहीं तुरक, हम नाहीं जैनी अंग्रेज।
सुमन सम्हारत रहत नित, कुंजबिहारी सेज॥
कुंजबिहारी सेज छाड़ि, मग दक्षिण डेरो।
रहें विलोकत केली नाम, भागवत अली मेरो॥
श्री ललिता सखी पाय कृपा,सेवत मुख स्यामहिं।
नहीं काहू सौ द्रोह, मोह काहू सों है नाही॥

नूरमोहम्मद ने उधर देखा तो सारे शरीर पर रज लपेटे हुए एक संत (श्री भगवत रसिक देव जु) अपनी मस्ती में गा रहा थे।
नूरमोहम्मद ने पूछा- आप तो बहुत अच्छा गाते हैं, पर एकांत वन प्रांत में आप यह गीत किसको सुना रहे हैं ?
संत ने कहा- अपने श्यामा~श्याम को
नूरमोहम्मद ने कहा- अपने ? यानी केवल आपके ही हैं, श्यामा-श्याम और किसी के नही हैं ?
संत ने कहा- प्रत्येक के है और प्रत्येक उनके हैं।
नूर मोहम्मद ने कहा- और बताइये उनके बारे में!
सन्त ने कहा- स्वामी श्री हरिदास जी का नाम सुना है ?
नूर मोहम्मद ने कहा- हाँ मैने सुना है, महान सम्राट अकबर भी उनके दर्शन करके कृथार्थ हो गया था।
सन्त ने कहा- हाँ वे ही हैं! हरिदास जी, उनके प्रेम देश में वही पहुँच सकता है, जो श्यामा-श्याम का हो गया है। कभी उनके लाडले ठाकुर बाँकेबिहारो के दर्शन किये है ?
नूरमोहम्मद ने कहा- नही, महाराज पर एक बात बताइये माया काल से परे रहने वाले श्यामा-श्याम की भी प्रतिमा ?
संत- कभी तुम्हे प्यास लगी है ?
नूर- रोज लगती है!
संत- पानी पीते हो ?
नूर- जी पीता हूँ!
संत- तृप्ति मिलती है ?
नूर- मिलती है महाराज!
सन्त- तृप्ति की कोई प्रतिमा है क्या ?
नूर- नही महाराज!
संत- फिर पानी क्या है। पानी तृप्ति की प्रतिमा है। रस से तृप्ति मिलती है। तृप्ति और रस दोनों एक है। यह अनुभव का विषय है, बहस का नही जाओ, आज बिहारी जी महाराज के दर्शन करो प्रेम स्वरूप होकर स्वामी जी का ध्यान करके।

नूर मोहम्मद सन्त की आज्ञानुसार बाँकेबिहारी के मन्दिर की ओर चल पड़े, जैसे ही मन्दिर में प्रवेश करने लगा पुजारियों ने रोक दिया, कहा यवनों को मन्दिर में प्रवेश की अनुमति नही है।

नूर ने कहा- 'पर मैं तो अपनी लौकिक पहचान मिटा चुका हूँ, स्वामी जी का अनुगत हूँ। मुझमें दर्शन करने की योग्यता है, ऐसा मुझे एक सन्त ने कहा है।'

उसने बहुत कहा पर किसी ने उसकी एक न मानी उसे मन्दिर में प्रवेश नही मिल पाया। वह मन्दिर के पीछे जाकर बैठ गया। न उसे भूख की चिंता थी न प्यास की। उसके होंठो से बस एक ही शब्द की निरंतर आवर्त्ति हो रही थी - बिहारी जी, बिहारी जी, बिहारी जी.....।

रात को बिहारी जी की शयन भोग आरती हो गयी। मन्दिर बंद हो गया, किन्तु नूर बिहारीजी बिहारीजी रटता रहा। ज्यों-ज्यों रात बीतती गयी न जाने कहाँ से उसके कानो मैं संगीत पढ़ने लगा और बिहारी जी बिहारी जी के साथ धुन अमृत घोलने लगी।

तभी उन्हें अपने शरीर पर सुकुमार से हाथों का स्पर्श महसूस किया। एक किशोर उनकी ठोड़ी पकड़कर कह रहा था, लो बिहारी जी का प्रसाद पा लो उन्होंने तुम्हारे लिए भिजवाया है।

नूर ने बिना आँखें खोले कहा--ऊँ हूँ! पहले तो मुझे द्वारपालों द्वारा अन्दर जाने से रुकवा दिया और अब प्रसाद भिजवा रहे हैं। मैं जब तक उसका दीदार न कर लूँगा पानी की बूँद भी न लूँगा। इतना कह ही रह था, कि उस किशोर ने उसके गले में बाँहें डाल दी और कहा आँखें तो खोलो की बन्द आँखों से ही दर्शन करोगे ?

नूरमोहम्मद ने आँखें खोली तो देखा, गौर-श्याम आभा से अभिमन्दित एक कमनीय किशोर उसके सामने खड़ा मुस्करा रहा था, उसने दूध भात से भरी चाँदी की कटोरी उसके हाथ में रख दी और अंतर्ध्यान हो गया।

उसके बाद से नूर मोहम्मद को किसी ने नही देखा, पर नियमित यमुना पार स्नान करने वाले भक्तो का कहना था कि, कभी-कभी अब भी उसकी आवाज यमुना की तरंगों के साथ सुनाई देती है।

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