बौद्ध कालीन भारत
Bhagwan budda
Indian History में बुद्ध budda का आगमन एक क्रान्तिकारी घटना है । बुद्ध budda का जन्म छठी शताब्दी ई . पू . में हुआ था। इतिहास में यह बुद्ध युग है ।
राजनैतिक दृष्टि से इस काल - खण्ड में सशक्त केन्द्रीय राजनैतिक शक्ति का अभाव था और समस्त देश छोटे - बड़े अनेक राज्यों में विभक्त था । इन राज्यों में षोडस महाजनपद ( सोलह महाजनपद ) सुविख्यात हैं । अंग , मगध , काशी , कोशल , वज्जि , मल्ल , चेदी , वत्स , कुरू , पांचाल , मत्स्य , सूरसेन , अस्सक , अवन्ति कम्बोज तथा गान्धार , ये सोलह महाजनपद थे । इन महाजनपदों में कुछ में राजतंत्रात्मक व्यवस्था थी तो कुछ में प्रजातंत्रात्मक।
राजनैतिक एकता के अभाव में ये महाजनपद आपस में लड़ते रहते थे और शक्तिशाली महाजनपद अशक्त राज्यों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेता था । इन महाजनपदों के अतिरिक्त दस गणराज्य थे। ये इस प्रकार थे - कपिल वस्तु के शाक्य , अल्लकय बुली . केसपुत्र के कालाम , रामग्राम के कोलिय , सुसभागिरि के भाग , पावा के भल्ल , कुशी नारा के मल्ल , यिप्पलिवन के मोरिय , मिथिला के विदेइ तथा वैशाली के लिच्छवि ।
यह काल - खण्ड धार्मिक दृष्टि से भारत के दो प्रभावकारी धर्मों के अभ्युदय का युग है । ये धर्म हैं - जैन धर्म और बौद्ध धर्म । ये दोनों धर्म पारम्परिक वैदिक धर्म की मान्यताओं यथा कर्मकाण्ड यज्ञ आदि के विरुद्ध थे । जैन धर्म के प्रवर्तक ऋषभदेव थे जो प्रथम तीर्थंकर थे । जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं । जिन्होंने जैन धर्म का प्रचार प्रसार किया । बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महान गौतम बुद्ध थे जिनके व्यक्तित्व और कृतित्व का न केवल भारतवासियों पर प्रभाव पड़ा प्रत्युत भारत के बाहर भी उसका व्यापक प्रसार हुआ ।
आज भी भारत के बाहर अनेक देशों यथा चीन , तिब्बत , कोरिया , श्रीलंका , जापान आदि देशों में इस महान विभूति के समर्थकों और अनुयायियों की विशाल जनसंख्या है । आज भी भारत में गौतम बद्ध के जन्म और जीवन से जुड़े अनेक पवित्र कोटि - कोटि भारतीयों और श्रद्धालुओं की आस्था के पावन स्थल के रूप में प्रतिष्ठापित है ।